सोयाबीन की फसल को बर्बाद करने वाले वायरस और उनके नियंत्रण

By Lokesh Anjana

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soybean virus

सोयाबीन की फसल में लगने वाले प्रमुख हानिकारक वायरस और उनके नियंत्रण

सोयाबीन (soybean) जो की भारत की प्रमुख तिलहन फसल है, लेकिन वायरस जनित रोग अक्सर उत्पादन को 25-70% तक कम कर देते हैं। ये रोग पत्तियों, फलियों और बीजों को प्रभावित करके गुणवत्ता व पैदावार दोनों घटाते हैं। इस लेख में हम सोयाबीन के 5 प्रमुख वायरस रोगों की पहचान, नुकसान और समेकित नियंत्रण पर चर्चा करेंगे।

1. सोयाबीन की फसल में पीला मोज़ेक वायरस

सोयाबीन की खेती करने वाले किसानों के लिए पीला मोज़ेक वायरस एक गंभीर चुनौती है। इसे Yellow Mosaic Virus – MYMV भी कहा जाता है यह रोग मुख्य रूप से मूंग के पीले मोज़ेक विषाणु के कारण होता है और इसका प्रभाव सोयाबीन उत्पादन करने वाले लगभग सभी क्षेत्रों में देखा गया है। प्राकृतिक रूप से इसका प्रकोप कई बार 70 प्रतिशत तक पहुंच जाता है, जिससे फसल की उपज और गुणवत्ता दोनों प्रभावित होती हैं।

Yellow Mosaic Virus – MYMV in soybean
सोयाबीन मे Yellow Mosaic Virus – MYMV का प्रकोप

यह वायरस मुख्यतः सफेद मक्खी (Whitefly) द्वारा फैलाया जाता है। सफेद मक्खी संक्रमित पौधों का रस चूसती है और फिर स्वस्थ पौधों पर जाकर संक्रमण फैला देती है। यह संक्रमण दलहनी फसलों और खेत में उगने वाले खरपतवारों के माध्यम से भी फैलता रहता है, जो इस रोग के स्थायी स्रोत या भंडार का कार्य करते हैं।

लक्षण और पहचान

इस रोग के लक्षण सबसे पहले पत्तियों पर दिखाई देते हैं, जहाँ हरे भागों में पीले-पीले धब्बे बनते हैं। ये धब्बे कभी पूरी पत्ती पर फैल जाते हैं तो कभी अनियमित धारियों के रूप में पत्ती की मुख्य शिरा के साथ नज़र आते हैं, जैसे-जैसे पत्तियाँ पुरानी होती हैं, उन पर भूरे रंग के मुर्चे जैसे धब्बे उभरने लगते हैं। रोग की तीव्रता बढ़ने पर पत्तियाँ समय से पहले पीली पड़ने लगती हैं और उनका आकार विकृत हो जाता है – यानी मुड़ी और टेढ़ी-मेढ़ी हो जाती हैं।

प्रभावित पौधों में फूल और फलियों की संख्या कम हो जाती है, जिससे उत्पादन में सीधा असर पड़ता है।

इसके अलावा, इन पौधों से उत्पन्न बीजों में तेल की मात्रा कम और प्रोटीन की मात्रा अधिक पाई जाती है, जो प्रसंस्करण और विपणन के लिए उपयुक्त नहीं होती।

नियंत्रण और प्रबंधन

इस रोग का नियंत्रण सफेद मक्खी के प्रभावी प्रबंधन और खेत में स्वच्छता बनाए रखने पर निर्भर करता है। निम्नलिखित उपायों से इस वायरस पर नियंत्रण पाया जा सकता है:

खेत में सफेद मक्खी की संख्या कम करने के लिए और उनकी रोकथाम के लिए:

थायोमिथोक्सम (Thiamethoxam) 12.6% + लैम्ब्डा सायहेलोथ्रिन (Lambda Cyhalothrin) (125 मि ली/हे) या बीटासायफ्लुथ्रिन (Beta-cyfluthrin ) + इमिडाक्लोप्रिड( Imidacloprid ) (350 मि ली/हे) जैसे कीटनाशकों का छिड़काव करें

  • बुवाई से पूर्व खेत में फोरेट 10 जी. को 10 किलोग्राम/हेक्टेयर की दर से मिट्टी में मिलाकर उपयोग करें।
  • खेत में मौजूद खरपतवार और स्वतः उगी दलहनी फसलों को तुरंत नष्ट करें, क्योंकि ये वायरस के वाहक बन सकते हैं।
  • जिन पौधों में रोग के लक्षण दिखाई दें, उन्हें तत्काल उखाड़कर जला दें या मिट्टी में गाड़ दें ताकि संक्रमण का विस्तार न हो।
  • रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें

व्यक्तिगत अनुभव –

मेरे मध्य प्रदेश (उज्जैन) के खेत में इस रोग से 2023 में 30% फसल प्रभावित हुई थी। कृषि विज्ञान केंद्र की सलाह से हमने [Beta-cyfluthrin +Imidacloprid का छिड़काव] अपनाया, जिससे कुछ दिनों में सुधार दिखाई दिया।

सावधानी: कीटनाशकों का उपयोग स्थानीय कृषि अधिकारी की सलाह से ही करें।

2. सोयाबीन मोजेक वायरस (Soybean Mosaic Virus – SMV)

सोयाबीन उत्पादन में मोज़ेक वायरस एक ऐसा रोग है जो सीधे उपज को प्रभावित करता है। यह बीज जनित वायरस है और इसके कारण फसल में लगभग 25 प्रतिशत तक की हानि हो सकती है। यह रोग प्रारंभिक अवस्था से ही पौधे के विकास को बाधित करता है, जिससे न केवल पौधे की वृद्धि रुक जाती है बल्कि फलियां भी कम और विकृत बनती हैं।

Soybean Mosaic Virus (smv)
सोयाबीन मे Soybean Mosaic Virus (SMV)

रोग फैलाने वाले प्रमुख कीट हैं:

  • एफिस गासीपी (Aphis gossypii)
  • एफिस क्रासीवोरा (Aphis craccivora)
  • माइजस परसिकी (Myzus persicae)

ये कीट पौधों का रस चूसते हैं और वायरस को एक पौधे से दूसरे में पहुंचाते हैं। इस रोग के लक्षण 24–25 डिग्री सेल्सियस तापमान पर सामान्य रूप से देखे जाते हैं, लेकिन तापमान बढ़कर 30 डिग्री सेल्सियस से ऊपर होने पर लक्षण धीरे-धीरे गायब हो जाते हैं। रोग के प्रकट होने का उपयुक्त समय पौधों की 20–25 दिन की अवस्था होती है।

लक्षण और पहचान

जब संक्रमित बीज बोया जाता है तो सबसे पहले पौधे की नवजात पत्तियाँ प्रभावित होती हैं। ये पत्तियाँ चितकबरी, सिकुड़ी हुई और असामान्य रूप से उभरी हुई दिखाई देती हैं। जैसे-जैसे पौधा बढ़ता है, नई पत्तियों में शिराओं का उभार (शिरा प्रकटन) दिखने लगता है, जो समय के साथ हल्के से गहरे रंग के धब्बों में बदल जाता है।

तीसरे तृतीयक पत्र में विशेष प्रकार के फफोले नजर आते हैं और इसके साथ ही पौधे की वृद्धि लगभग रुक जाती है। इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों की शिराएं मुरझाकर भूरे रंग की हो जाती हैं और पौधा सामान्य से बौना रह जाता है। फलियां कम, मुड़ी हुई, और रोएं रहित बनती हैं। इनके बीजों पर हायलम जैसे रंग का फैलाव देखा जाता है, जिससे उनकी गुणवत्ता भी घटती है।

नियंत्रण और प्रबंधन उपाय

इस वायरस के प्रभावी नियंत्रण के लिए निम्न उपायों को अपनाना आवश्यक है:

  • बीज उपचार एवं शुद्ध बीज का चयन:
    • केवल स्वस्थ और प्रमाणित बीज का प्रयोग करें।
    • बीज को थायामिथाक्साम 70 डब्ल्यू एस से 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें।
  • रोग वाहक कीटों पर नियंत्रण:
    • Thiamethoxam 12.6% + Lambda Cyhalothrin (125ml/h) या Beta-cyfluthrin + Imidacloprid (ml/h) का छिड़काव करे
    • छिड़काव 10 दिन के अंतराल पर करें ताकि नए कीट नियंत्रण में रहें।
  • खेत से रोगी पौधों को हटाना:
    • जैसे ही रोग के लक्षण नजर आएं, प्रभावित पौधों को उखाड़कर नष्ट कर दें।

3. सोयाबीन में बड ब्लाइट / Bud Blight (Necrosis)

सोयाबीन की फसल में बड ब्लाइट रोग, जिसे बड़ नेक्रोसिस विषाणु (Bud Necrosis Virus) के नाम से जाना जाता है, उत्पादन को गंभीर रूप से प्रभावित करता है। यह रोग बीज जनित होता है और यदि समय पर नियंत्रण न किया जाए, तो इससे फसल की उपज में लगभग 25 प्रतिशत तक की गिरावट देखी जा सकती है। रोग की तीव्रता और पौधे की अवस्था के अनुसार यह प्रभाव और अधिक बढ़ सकता है।

Bud Necrosis Virus in soybean
सोयाबीन में बड नेक्रोसिस विषाणु / Bud Necrosis Virus

यह वायरस बीज के माध्यम से फैलता है, और इसका प्रभाव सिर्फ सोयाबीन तक सीमित नहीं रहता। यह वायरस कई प्रकार के पौधों को संक्रमित कर सकता है, जैसे:

  • कम्पोजिटी (Compositae)
  • कुकरविटेसी (Cucurbitaceae)
  • अमरेन्थेसी (Amaranthaceae)
  • लिलिएसी, मालवेसी, लेगूमिनेसी, सोलेनेसी आदि कुलों के पौधे

इसलिए यह आवश्यक है कि खेत में उपस्थित अन्य पौधों और खरपतवारों पर भी विशेष ध्यान दिया जाए।

लक्षण और पहचान

बड ब्लाइट रोग Bud Necrosis Virus का सबसे प्रमुख लक्षण शीर्षस्थ कली (टर्मिनल बड) में देखा जाता है, जो मुड़कर छतरी की मुट्ठी जैसी आकृति ले लेती है। इसके बाद, अन्य कलियां भी भूरी होकर सूख जाती हैं और बहुत ही नाजुक हो जाती हैं — हल्के स्पर्श से भी टूट जाती हैं। तना और शाखाओं के अंदर का भाग (पिथ) भूरा हो जाता है।

इस रोग से प्रभावित पौधों में फलियों का विकास रुक जाता है और जो बीज बनते हैं उनकी जीवन क्षमता भी कम हो जाती है। इसके अतिरिक्त पौधा सामान्य से अधिक समय तक हरा रहता है और उसकी परिपक्वता देर से आती है, जिससे कटाई का समय प्रभावित होता है।

रोग की पहचान के अन्य संकेतों में गांठों के बीच की दूरी का कम हो जाना और पौधे का ठिगना रह जाना शामिल है। यह रोग विशेष रूप से 4 से 5 सप्ताह की आयु के पौधों में अधिक प्रभावी होता है। हालांकि, यदि तापमान 25 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक हो, तो इसके लक्षण कम दिखाई देते हैं या विलुप्त हो जाते हैं।

नियंत्रण और प्रबंधन उपाय

बड ब्लाइट का प्रभावी नियंत्रण निम्नलिखित उपायों द्वारा किया जा सकता है:

  • स्वस्थ बीज का प्रयोग:
    • केवल विषाणुरहित, प्रमाणित और स्वस्थ बीजों का ही चयन करें।
  • खरपतवार नियंत्रण:
    • चौड़ी पत्तियों वाले खरपतवार, जो इस विषाणु के वाहक का कार्य करते हैं, उन्हें खेत से पूरी तरह नष्ट कर दें।
  • रोगी पौधों की पहचान और नष्ट करना:
    • जिन पौधों में बीमारी के लक्षण दिखें, उन्हें तुरंत उखाड़कर जला दें या गहरा गाड़ दें।
  • फसल चक्र अपनाना:
    • सोयाबीन के साथ मक्का, ज्वार जैसी फसलों का फसल चक्र अपनाएं, जिससे रोग के चक्र को तोड़ा जा सके।
  • बॉर्डर क्रॉपिंग:
    • सोयाबीन के खेत के चारों ओर मक्का या ज्वार जैसी फसलें लगाने से विषाणु के प्रसार को रोका जा सकता है।

4. बीन पॉड मॉटल वायरस

सोयाबीन की खेती में कई तरह की वायरस जनित बीमारियां सामने आती हैं, जिनमें से बीन पॉड मॉटल वायरस (Bean Pod Mottle Virus) एक कम प्रचलित लेकिन कभी-कभी गंभीर नुकसान पहुंचाने वाला विषाणु है। यह रोग अकेले कम असर डालता है, लेकिन जब सोयाबीन मोजेक जैसे अन्य वायरस के साथ मिलकर फैलता है, तो यह फसल के उत्पादन को गहराई से प्रभावित कर सकता है।

Bean Pod Mottle Virus in soybean
सोयाबीन मे Bean Pod Mottle Virus / बीन पॉड मॉटल वायरस

यह बीमारी मुख्य रूप से एक विशेष प्रकार के बीटल, सिरा टोमा ट्राईफरकेटा (Cerotoma trifurcata) के माध्यम से फैलती है। यह कीट संक्रमित पौधों से स्वस्थ पौधों तक वायरस को पहुंचाता है। इसके अलावा, कुछ खरपतवार जैसे डेसमोडियम, फैजियोलस एक्युरिफोलियस तथा ट्राईफोलिएम इनरकारेनम इस वायरस के प्राकृतिक भण्डार के रूप में कार्य करते हैं और खेत में इसके प्रसार को बढ़ावा देते हैं।

पहचान और लक्षण

इस वायरस से ग्रसित पौधों में शुरुआती लक्षण ऊपर की नई पत्तियों पर दिखाई देते हैं। इन पत्तियों पर हरे या पीले रंग के चितकबरे धब्बे स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं। जब वातावरण ठंडा होता है, तो लक्षण ज्यादा स्पष्ट दिखते हैं, जबकि गर्म मौसम में ये लक्षण छिप जाते हैं और फली बनने की अवस्था तक कम दिखाई देते हैं। यह रोग बीज गुणवत्ता पर भी असर डालता है — ग्रसित पौधों के बीजों में फफूंद जनित बीमारियों की संभावना अधिक हो जाती है।

रोकथाम और नियंत्रण के उपाय

इस बीमारी को नियंत्रित करना संभव है यदि सही प्रबंधन समय पर किया जाए। इसके लिए निम्न उपाय अपनाना चाहिए:

  • स्वस्थ और शुद्ध बीज का ही चयन करें और बुवाई से पहले बीज उपचार करें।
  • खेत में उपस्थित सभी प्रकार के खरपतवारों को समय-समय पर नष्ट करते रहें, क्योंकि ये वायरस के वाहक हो सकते हैं।
  • रोग फैलाने वाले बीटल की रोकथाम के लिए क्युनालफास (Quinalphos) 0.05% घोल का छिड़काव करें। यह छिड़काव 15–20 दिन के अंतराल पर दोहराते रहना चाहिए।

5. सोयाबीन की फसल में पर्ण भत्ता (Phyllody) रोग

सोयाबीन की फसल में फूल आने की अवस्था के दौरान एक विशेष प्रकार का रोग देखा जाता है जिसे झाड़ूपन रोग या Phyllody कहा जाता है। यह रोग पौधों के फूलों और कलियों में असामान्य परिवर्तन लाकर उत्पादन में भारी गिरावट ला सकता है। यदि समय पर इस रोग को न रोका जाए, तो पूरी फसल बेकार हो सकती है।

सोयाबीन में पर्ण भत्ता (Phyllody) रोग

यह रोग विशेष रूप से उस समय प्रकट होता है जब पौधा फूलने की अवस्था में होता है। इसका प्रभाव धीरे-धीरे पूरे खेत में फैल सकता है, खासकर यदि शुरुआत में लक्षणों को नजरअंदाज कर दिया जाए। चूंकि इस रोग का संपूर्ण कारण स्पष्ट नहीं है, इसलिए सावधानी और रोकथाम ही इसका प्रमुख उपाय है।

रोग का कारण

यह बीमारी माइकोप्लाज्मा जैसे रोगाणु (Mycoplasma-like organisms – MLOs) के कारण होती है। इसके प्रसार का मुख्य संदेह एक फुदका (leafhopper) Scaphoideus fuliginosus पर जाता है, जो संभवतः इस रोग के वाहक की भूमिका निभाता है।

प्रमुख लक्षण

झाड़ूपन रोग के लक्षण फूल बनने की अवस्था में अधिक स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं:

  • पत्तियों की कक्ष में असामान्य रूप से अत्यधिक कलियों का विकास होता है जिससे पौधा झाड़ू जैसा दिखाई देता है।
  • फूलों के अंग जैसे कि पंखुड़ियाँ, पुंकेसर और अंडाशय, सभी पत्तियों जैसी संरचना में बदल जाते हैं, जिससे बीज नहीं बनते।
  • रोग से ग्रसित पौधे सामान्य पौधों की तुलना में अधिक समय तक हरे रहते हैं, लेकिन उनका विकास अव्यवस्थित होता है।
  • पौधा जितनी जल्दी इस रोग की चपेट में आता है, उसका असर उतना ही गंभीर होता है।
  • यह रोग दूर से भी स्पष्ट रूप से पहचाना जा सकता है, क्योंकि पौधे के ऊपरी हिस्से झाड़ी जैसे दिखने लगते हैं।

रोग प्रबंधन

झाड़ूपन रोग का समय पर नियंत्रण न केवल फसल को बचा सकता है, बल्कि उत्पादन को भी स्थिर बनाए रखता है। इसके लिए निम्न उपाय प्रभावी माने गए हैं:

  • प्रभावित पौधों को तुरंत खेत से निकालकर नष्ट करें, ताकि रोग अन्य पौधों में न फैले।
  • लेडरमाइसिन या स्ट्रेप्टोसाइक्लिन (Ledermycin / Streptocycline) नामक एंटीबायोटिक दवाओं का 0.25% घोल बनाकर 13–15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें
  • फसल में केवल एक ही किस्म न लगाएंविविध किस्मों का उपयोग करने से रोग का फैलाव कम हो सकता है।
अतिरिक्त सुझाव
  • फुदका की निगरानी नियमित रूप से करें और उसके नियंत्रण हेतु कीटनाशकों का उपयोग करें यदि संख्या अधिक हो।
  • स्वस्थ बीज का ही उपयोग करें और रोगग्रस्त खेत में फसल चक्र अपनाएं।
  • रोग के पहले संकेत मिलते ही विशेषज्ञ से सलाह लेना अत्यंत आवश्यक है।

NOTE : यह जानकारी ICAR / कृषि विज्ञान केंद्र के दिशानिर्देशों पर आधारित है। फिर भी किसी भी रसायन या दवा के प्रयोग से पहले स्थानीय कृषि अधिकारी या विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें।

निष्कर्ष :

सोयाबीन की फसल में वायरस जनित बीमारियाँ उत्पादन और गुणवत्ता दोनों को बुरी तरह प्रभावित कर सकती हैं। समय पर पहचाने गए लक्षणों और प्रभावी नियंत्रण उपायों से इन बीमारियों पर काबू पाया जा सकता है। किसानों को चाहिए कि वे स्वस्थ बीज, साफ-सुथरा खेत, और नियंत्रित कीट प्रबंधन को प्राथमिकता दें ताकि उनकी मेहनत का पूरा फल मिल सके।

Disclaimer :

किसी भी रसायन या दवा के प्रयोग से पहले स्थानीय कृषि अधिकारी या विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें। दवाओं का उपयोग निर्धारित मात्रा और सही समय पर ही करें। यह सुझाव केवल शैक्षणिक उद्देश्य से है।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)

पीला मोज़ेक वायरस कैसे फैलता है ?

यह वायरस मुख्यतः सफेद मक्खी (Whitefly) द्वारा फैलाया जाता है।

खेत में सफेद मक्खी की रोकथाम और नियंत्रण के लिए क्या करे ?

सफेद मक्खी की रोकथाम और नियंत्रण के लिए थायोमिथोक्सम 12.6% + लैम्ब्डा सायहेलोथ्रिन या Beta-cyfluthrin +Imidacloprid जैसे कीटनाशकों का छिड़काव करें

सोयाबीन मे पीला मोज़ेक वायरस के लक्षण ?

पत्तियाँ समय से पहले पीली पड़ने लगती हैं और उनका आकार विकृत हो जाता है – यानी मुड़ी और टेढ़ी-मेढ़ी हो जाती हैं।

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