मक्का की 5 नई उन्नत किस्में : पशुपालक और मक्का उत्पादक किसानो के लिए जारी हुई नई किस्में

By shivani gupta

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मक्का की खेती और उन्नत किस्में

भारत में मक्का की खेती का महत्व तेजी से बढ़ रहा है। मक्का न केवल एक महत्वपूर्ण अनाज है, बल्कि यह पशुओं के चारे, तेल उद्योग, और स्टार्च निर्माण में भी काम आता है। भारत में makka मुख्यतः खरीफ के मौसम में उगाई जाती है, लेकिन रबी और जायद में भी इसकी खेती का प्रचलन बढ़ा है। यदि किसान उन्नत बीज, makka ki वैज्ञानिक विधि, समय पर उर्वरक प्रबंधन और सिंचाई अपनाएं तो मक्का की उपज और मुनाफा दोनों ही दोगुना हो सकते हैं। आइए, जानते हैं मक्का की खेती की उपयोगी जानकारी (makka ki kheti) और मक्का की 5 नई उन्नत किस्में के बारे मे ।

मक्का की 5 नई उन्नत किस्में

हाल ही में पिछले वर्ष जारी की गई (मक्का की नई वैरायटी) मक्का की नविन अनुशंसित किस्मों की जानकारी इस प्रकार है :

पूसा बायोफोर्टिफाइड मक्का हाइब्रिड 4 (APH4)

यह किस्म भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा विकसित की गई है। यह पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तराखंड (मैदान), पश्चिमी उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के लिए उपयुक्त है। यह खरीफ मौसम में बोई जाती है।

इस किस्म की उपज क्षमता क्षेत्रवार अलग-अलग देखी गई है। उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्र (NWPZ) में इसकी औसत उपज 84.33 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक रिकॉर्ड की गई है, जबकि प्रायद्वीपीय क्षेत्र (PZ) में यह 71.13 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा मध्य भारत क्षेत्र (CWZ) में 56.58 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है। इसी प्रकार इसकी परिपक्वता अवधि भी क्षेत्र के अनुसार भिन्न होती है—NWPZ में 79.8 दिन, PZ में 93.9 दिन और CWZ में 86.4 दिन।

इस किस्म की प्रमुख विशेषताओं में इसका पोषण-समृद्ध होना शामिल है। इसमें प्रोविटामिन-A की मात्रा 6.7 पीपीएम, लाइसिन 3.47% और ट्रिप्टोफैन 0.78% पाई जाती है, जो इसे एक बेहतर पोषणयुक्त विकल्प बनाते हैं। इसके अलावा, यह MLB (Maydis Leaf Blight), BLSB (Banded Leaf and Sheath Blight) तथा TLB (Turcicum Leaf Blight) जैसे प्रमुख रोगों के प्रति मध्यम स्तर तक प्रतिरोधी भी है।

पूसा HM4 मेल स्टेराइल बेबी कॉर्न-2 (ABSH4-2)

पूसा HM4 मेल स्टेराइल बेबी कॉर्न-2 (ABSH4-2) एक उन्नत किस्म है जिसे भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा विकसित किया गया है। यह किस्म विशेष रूप से खरीफ मौसम में बिहार, झारखंड, ओडिशा, पूर्वी उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के सिंचित क्षेत्रों में खेती के लिए उपयुक्त है।

इसकी उपज क्षमता क्षेत्र के अनुसार भिन्न होती है—पूर्वी उत्तर भारत (NEPZ) में लगभग 19.56 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, दक्षिण भारत (PZ) में 14.07 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और मध्य भारत (CWZ) में 16.03 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक देखी गई है। यह किस्म लगभग 53 दिनों में परिपक्व हो जाती है।

इसकी एक प्रमुख विशेषता है कि यह 100% मेल स्टेराइल होती है, यानी इसमें परागकोश नहीं बनते जिससे परागण नहीं होता। इसके अलावा, यह किस्म चारकोल सड़न रोग के प्रति मध्यम प्रतिरोध क्षमता भी रखती है, जिससे फसल की सुरक्षा और उत्पादन में स्थिरता बनी रहती है।

IMH 230 (IMHSB 20R-6)

यह सिंगल क्रॉस हाइब्रिड किस्म ICAR-भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान, लुधियाना, पंजाब द्वारा विकसित की गई है और रबी मौसम में खेती के लिए विशेष रूप से उपयुक्त है। इसे पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल के सिंचित क्षेत्रों में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है।

इस किस्म की औसत उपज क्षमता 92.36 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है और यह लगभग 145.2 दिनों में परिपक्व हो जाती है। यह किस्म जैविक तनावों के प्रति सहनशील है और प्रमुख पत्तियों से संबंधित रोग जैसे MLB (मेज लीफ ब्लाइट), CHR (कर्नेल रॉट) और TLB (टर्पडो लीफ ब्लाइट) के प्रति मध्यम प्रतिरोध दर्शाती है।

साथ ही, यह कीटों में चिलोपार्टेलस (तना छेदक) और फॉल आर्मीवर्म के प्रति भी मध्यम स्तर की सहनशीलता रखती है, जिससे इसकी खेती अधिक सुरक्षित और टिकाऊ बनती है।

IMH 231 (IMHSB 20K-10)

IMH 231 (IMHSB 20K-10) एक सिंगल क्रॉस हाइब्रिड किस्म है, जिसे ICAR–भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान, लुधियाना द्वारा विकसित किया गया है। यह किस्म खरीफ मौसम में पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और असम के सिंचित क्षेत्रों के लिए विशेष रूप से उपयुक्त मानी जाती है।

इसकी औसत उपज क्षमता 70.28 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है और यह लगभग 90 दिनों में परिपक्व हो जाती है। यह किस्म जलभराव की स्थिति और पौधों के गिरने (lodging) के प्रति सहिष्णु है, जिससे इसकी फसल कठिन परिस्थितियों में भी टिकाऊ बनी रहती है।

रोगों के मामले में यह TLB (टर्पडो लीफ ब्लाइट), MLB (मेज लीफ ब्लाइट) और FSR (फ्यूजेरियम स्टॉक रॉट) के प्रति मध्यम प्रतिरोध दर्शाती है। इसके अलावा, प्रमुख कीटों जैसे चिलोपार्टेलस (तना छेदक) और फॉल आर्मीवर्म के प्रति भी यह किस्म मध्यम सहनशीलता रखती है, जिससे उत्पादन में स्थिरता बनी रहती है।

पूसा पॉपकॉर्न हाइब्रिड – 2 (APCH 3)

पूसा पॉपकॉर्न हाइब्रिड – 2 (APCH 3) एक उन्नत किस्म है जिसे ICAR–भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा विकसित किया गया है। यह किस्म विशेष रूप से पॉपकॉर्न उत्पादन के उद्देश्य से तैयार की गई है और इसके दाने आकार, रंग और फूलने की क्षमता (popping quality) के लिहाज से उच्च गुणवत्ता वाले होते हैं। यही कारण है कि बाजार में इसकी मांग अच्छी बनी रहती है और किसान इससे लाभकारी मूल्य प्राप्त कर सकते हैं। यह किस्म न केवल उत्पादन में बेहतर है, बल्कि इसकी गुणवत्ता भी व्यावसायिक स्तर पर प्रतिस्पर्धी पॉपकॉर्न उत्पादों के बराबर मानी जाती है, जिससे यह छोटे व मध्यम किसानों के लिए एक अच्छा विकल्प बन सकती है।

उन्नत किस्में स्थानीय कृषि विश्वविद्यालय या कृषि विज्ञान केंद्र से खरीदना उचित रहता है ताकि क्षेत्र विशेष के अनुसार उपयुक्त बीज मिल सके।

पशु पालक और चारा उत्पादक किसानो के लिए मक्के की नई किस्में

पूसा चारा मक्का हाइब्रिड-1 (AFH-7)

पूसा चारा मक्का हाइब्रिड-1 (AFH-7) एक उच्च उत्पादकता वाली चारा किस्म है, जिसे ICAR–भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा विकसित किया गया है।

यह किस्म विशेष रूप से उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के तराई क्षेत्रों में खरीफ मौसम के सिंचित खेतों के लिए उपयुक्त पाई गई है। हाइब्रिड प्रकृति वाली यह किस्म लगभग 95 से 105 दिनों में परिपक्व हो जाती है और औसतन 413.1 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हरे चारे की उपज देती है, जो पशुपालन के लिए अत्यंत लाभकारी है।

इस किस्म की पोषण गुणवत्ता भी काफी अच्छी है—एसिड डिटर्जेंट फाइबर (ADF) की मात्रा 41.9%, तटस्थ डिटर्जेंट फाइबर (NDF) 62.5% और इन-विट्रो शुष्क पदार्थ पाचन क्षमता (IVDMD) 56.4% दर्ज की गई है। ये सभी पोषण मानक पशुओं के लिए बेहतर हजम और पौष्टिक चारा सुनिश्चित करते हैं।

रोग प्रतिरोधकता के लिहाज से यह किस्म मेडीस लीफ ब्लाइट (MLB) के प्रति प्रतिरोधी है और चिलो पार्टेलस (तना छेदक) जैसे कीटों के प्रति मध्यम स्तर की सहनशीलता रखती है। इन विशेषताओं के कारण यह किस्म पशुपालकों के लिए एक भरोसेमंद और पोषणयुक्त विकल्प बनती है।

HQPM 28

HQPM 28 एक उत्कृष्ट हाइब्रिड चारा मक्का किस्म है, जिसे ICAR–AICRP के अंतर्गत चारा फसलों पर CCS हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, करनाल के क्षेत्रीय अनुसंधान स्टेशन द्वारा विकसित किया गया है। यह किस्म विशेष रूप से खरीफ मौसम में उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के लिए उपयुक्त पाई गई है।

इस किस्म की उपज क्षमता काफी प्रभावशाली है—हरा चारा औसतन 427.6 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, शुष्क पदार्थ 79.06 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, बीज 20.9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और प्रोटीन उत्पादन 7.0 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होता है। लगभग 98 दिनों में परिपक्व होने वाली

यह किस्म रोगों के प्रति भी काफी हद तक सुरक्षित है। यह मेडीस लीफ ब्लाइट (MLB), बैंडेड लीफ एंड शीथ ब्लाइट (BLSB) जैसे रोगों के प्रति प्रतिरोधी है और साथ ही फॉल आर्मी वर्म जैसे कीटों के विरुद्ध भी सहनशीलता प्रदर्शित करती है।

HQPM 28 की एक और महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह साइलेज (कुट्टी बनाकर भंडारण योग्य चारा) बनाने के लिए आदर्श मानी जाती है। यदि आप अधिक चारा, बेहतर पोषण और साइलेज की दिशा में सोच रहे हैं, तो यह किस्म निश्चित रूप से एक बेहतरीन विकल्प साबित हो सकती है।

मक्का की बुवाई का समय और विधि

बुवाई का समय

  • खरीफ: जून के मध्य से जुलाई तक।
  • रबी: अक्टूबर से नवम्बर।
  • जायद: फरवरी से मार्च।

बीज दर और दूरी

  • बीज दर: 18-20 किग्रा प्रति हेक्टेयर।
  • कतार से कतार दूरी: 60-75 सेमी।
  • पौधे से पौधे दूरी: 20-25 सेमी।

भूमि की तैयारी

मक्का के लिए दोमट या बलुई दोमट मिट्टी सर्वोत्तम है। खेत की गहरी जुताई के बाद दो बार हल्की जुताई करें। अंतिम जुताई में 10-12 टन गोबर की सड़ी खाद मिलाएं जिससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहे। भूमि समतल और अच्छी जल निकासी वाली होनी चाहिए।

उर्वरक प्रबंधन

मक्का की अच्छी पैदावार के लिए खाद का संतुलित उपयोग जरूरी है। सामान्यतः प्रति हेक्टेयर यह अनुशंसा की जाती है:

खादमात्रा
नाइट्रोजन120-150 किग्रा
फास्फोरस60 किग्रा
पोटाश40 किग्रा

नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुवाई के समय, शेष दो हिस्सों में – कल्ला निकलने और फूल आने की अवस्था में दें। इसके साथ ही जैविक खाद और जिंक सल्फेट मिलाना पौधों की वृद्धि के लिए लाभकारी है।

सिंचाई का प्रबंधन

खरीफ मक्का में बारिश के आधार पर सिंचाई की आवश्यकता होती है। वहीं, रबी मक्का में 5-6 बार सिंचाई करना जरूरी है। विशेषकर निम्न अवस्थाओं में सिंचाई अवश्य करें:

  • कल्ले निकलने की अवस्था
  • फूल आने की अवस्था
  • दाना भरने की अवस्था

सूखे क्षेत्रों में ड्रिप इरिगेशन से भी जल संरक्षण करते हुए अच्छी उपज ली जा सकती है।

खरपतवार नियंत्रण

पहले 30-40 दिनों में खरपतवार नियंत्रण अत्यंत आवश्यक है। समय पर निराई-गुड़ाई करें। इसके अलावा प्री-इमरजेंस हर्बीसाइड जैसे एट्राजिन 50 WP का प्रयोग कर सकते हैं।

रोग और कीट प्रबंधन

मुख्य रोग

  • तना छेदक
  • पर्ण झुलसा रोग
  • जड़ सड़न

रोकथाम

  • समय पर कीटनाशक जैसे क्लोरपायरीफॉस आदि का छिड़काव।
  • रोग प्रतिरोधक किस्में चुनना।
  • बीज उपचार फफूंदनाशी जैसे कार्बेन्डाजिम से करें।

यह भी देखें : मक्का की खेती का दुश्मन है यह अमेरिकी कीट, ऐसे करें इस किट का सफाया

उत्पादन क्षमता, लागत और मुनाफा

मक्का की फसल में उत्पादन, लागत और लाभ इस प्रकार हो सकता है :

विवरणअनुमानित औसत आंकड़े
लागत₹15,000 – ₹20,000 प्रति हेक्टेयर
उपज40-50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर
बाजार मूल्य₹15-18 प्रति किलो
शुद्ध लाभ₹30,000 – ₹40,000 प्रति हेक्टेयर

उदाहरण

हरियाणा के किसान शिवपाल सिंह ने HM-4 किस्म से 52 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन लिया। उचित प्रबंधन से उन्होंने ₹42,000 प्रति हेक्टेयर मुनाफा कमाया।

कटाई और भंडारण

फसल पकने पर दाने सख्त और पीले हो जाते हैं। तब कटाई करें। दानों को अच्छी तरह सुखाने के बाद भंडारण करें ताकि नमी की वजह से खराबी न हो।

निष्कर्ष

मक्का की खेती यदि उन्नत तकनीक और अनुशंसित विधियों से की जाए तो यह अत्यधिक लाभकारी फसल है। सही किस्म, संतुलित खाद, समय पर सिंचाई और रोग नियंत्रण से किसान अपनी आय में अच्छा इजाफा कर सकते हैं। बदलते मौसम और तकनीक के साथ अगर खेती करें तो मक्का से दोगुना उत्पादन लेना संभव है।

FAQs

मक्का की बुवाई का सही समय क्या है?

खरीफ में जून-जुलाई, रबी में अक्टूबर-नवम्बर, और जायद में फरवरी-मार्च उत्तम समय है।

मक्का में कौन-सा खाद कब देना चाहिए?

120-150 किग्रा नाइट्रोजन तीन बार में, फास्फोरस और पोटाश बुवाई के समय दें।

क्या मक्का की जैविक खेती संभव है?

हाँ, गोबर की खाद, जैव उर्वरक और नीम आधारित कीटनाशकों से जैविक मक्का उगाई जा सकती है।

मक्का की फसल में सिंचाई कब करना जरूरी है?

कल्ला निकलने, फूल आने और दाना भरने की अवस्था में सिंचाई अत्यंत जरूरी है।

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