सोयाबीन फसल के लिए साप्ताहिक सलाह

By Lokesh Anjana

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सोयाबीन फसल के लिए साप्ताहिक सलाह

नमस्कार किसान भाइयों, इस सप्ताह की सोयाबीन फसल सलाह में आपका स्वागत है। इस समय खेतों से प्राप्त जानकारी और किसानों द्वारा भेजे गए फोटोग्राफ के आधार पर कई प्रकार की समस्याएँ और कीट/रोग देखे जा रहे हैं। इनका समय पर प्रबंधन करना आवश्यक है।

1. चूहों द्वारा नुकसान

कई खेतों से फलियाँ टूटकर गिरने की समस्या देखी गई है। यह मुख्य रूप से चूहों के प्रकोप के कारण है।

  • परंपरागत तरीकों (ट्रैप/खेत की सफाई) का उपयोग करें।
  • अनुशंसित रसायनों का प्रयोग करें।

2. सोयाबीन फसल में इल्लियों का नियंत्रण

सोयाबीन की फसल में इस समय विभिन्न प्रकार की पत्ती खाने वाली इल्लियाँ जैसे सेमी लूपर, चने की इल्ली और तंबाकू की इल्ली का प्रकोप देखा जा रहा है। इनका समय पर नियंत्रण आवश्यक है। नीचे अनुशंसित दवाओं की सूची दी गई है।

(A). सेमी लूपर इल्ली नियंत्रण

  • क्लोरएन्ट्रानिलिप्रोल 18.5 एस.सी (150 मि.ली./हे.)
  • इमामेक्टिन बेंजोएट 01.90 (425 मि.ली./हे.)
  • ब्रॉफ्लानिलाइड 300 एस.सी (42–62 ग्राम/हे.)
  • फ्लूबेंडियामाइड 20 डब्ल्यू.जी (250–300 ग्राम/हे.)
  • फ्लूबेंडियामाइड 39.35 एस.सी (150 मि.ली.)
  • लैम्ब्डा सायहेलोथ्रिन 04.90 सी.एस (300 मि.ली./हे.)
  • प्रोफेनोफॉस 50 ई.सी (1 ली./हे.)
  • क्लोरएन्ट्रानिलिप्रोल 09.30% + लैम्ब्डा सायहेलोथ्रिन 04.60% ZC (200 मि.ली./हे.)

(B). चने की इल्ली नियंत्रण

  • इंडोक्साकार्ब 15.80% EC (333 मि.ली./हे.)
  • फ्लूबेंडियामाइड 20 डब्ल्यू.जी (250–300 ग्राम/हे.)
  • फ्लूबेंडियामाइड 39.35 एस.सी (150 मि.ली.)
  • क्लोरएन्ट्रानिलिप्रोल 18.5 एस.सी (150 मि.ली./हे.)
  • इमामेक्टिन बेंजोएट 01.90 (425 मि.ली./हे.)

(C). तंबाकू की इल्ली नियंत्रण

  • क्लोरएन्ट्रानिलिप्रोल 18.5 एस.सी (150 मि.ली./हे.)
  • स्पायनेटोरम 11.7 एस.सी (450 मि.ली./हे.)
  • इमामेक्टिन बेंजोएट 01.90 (425 मि.ली./हे.)
  • फ्लूबेंडियामाइड 20 डब्ल्यू.जी (250–300 ग्राम/हे.)
  • फ्लूबेंडियामाइड 39.35 एस.सी (150 मि.ली.)
  • इंडोक्साकार्ब 15.8 एस.सी (333 मि.ली./हे.)
  • क्लोरफ्लूआज्युरोन 05.40% EC (500 मि.ली./हे.)
  • नोवाल्यूरोन + इंडोक्साकार्ब 04.50% एस.सी (825–875 मि.ली./हे.)
  • ब्रॉफ्लानिलाइड 300 g/l एस.सी (42–62 ग्राम/हे.)

महत्वपूर्ण सलाह

  • छिड़काव हमेशा अनुशंसित मात्रा और पर्याप्त पानी के साथ करें।
  • स्प्रेयर के प्रकार के अनुसार पानी की मात्रा का ध्यान रखें।
  • केवल अनुमोदित दवाओं का ही प्रयोग करें।

नोट: रसायनों के उपयोग से पहले स्थानीय कृषि विशेषज्ञ से सलाह लेना आवश्यक है।

3. चक्रभंग (स्टेम बोरर)

  • पुराना प्रकोप – नियंत्रण आवश्यक नहीं।
  • प्रारंभिक प्रकोप – अनुशंसित दवाओं से छिड़काव करें।

4. रस चूसने वाले कीट व बोरर्स

यदि इल्लियों के साथ-साथ ये भी हों, तो अनुशंसित रसायनों से छिड़काव करें।

5. पीली मोज़ाइक वायरस

यह रोग सफेद मक्खी (व्हाइट फ्लाई) से फैलता है।

  • कॉम्बिनेशन दवाओं (सिस्टमिक + कांटेक्ट) का छिड़काव करें।
  • इससे तना मक्खी का भी आंशिक नियंत्रण हो सकेगा।

6. एंथ्राक्नोज (फफूंदजन्य रोग)

लक्षण: तनों, पत्तियों व शाखाओं पर काला पड़ना। नियंत्रण हेतु:

  • टेबुकोनाजोल
  • या अन्य अनुशंसित फफूंदनाशी का छिड़काव करें।

7. राइजोक्टोनिया एरियल ब्लाइट

लक्षण: पत्तियों पर वॉटर लीजन और गलना। नियंत्रण हेतु अनुशंसित दवाओं में से किसी एक का प्रयोग करें।

8. सूखे की स्थिति में उपाय

  • सिंचाई की सुविधा हो तो अवश्य करें।
  • 60–70 दिन की फसल में दाने भरने की अवस्था पर फफूंदनाशी का छिड़काव करें।
  • बीज उत्पादन हेतु – फ्लक्सपायरोक्साड + पायराक्लोस्ट्रोबिन का उपयोग करें।

9. सफेद सुंडी (व्हाइट ग्रब)

सूखे क्षेत्रों में अधिक देखी गई। नियंत्रण हेतु:

  • बीटा साइक्लोथिन
  • इमिडाक्लोप्रिड – अधिक पानी के साथ वॉटर ड्रेंचिंग करें।

10. एकीकृत कीट प्रबंधन

  • खेत में पक्षियों के बैठने की व्यवस्था करें।
  • तंबाकू व चने की इल्ली के लिए फरोमोन ट्रैप लगाएँ।
  • जैविक खेती में Bacillus thuringiensis, Beauveria bassiana, Nomuraea rileyi जैसी दवाओं का 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें।

11. दवा उपयोग के सामान्य निर्देश

  • केवल केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड द्वारा अनुमोदित दवाओं का प्रयोग करें।
  • बिना वैज्ञानिक प्रमाण के दो दवाओं को मिलाकर न छिड़कें।
  • खरीद की रसीद अवश्य लें और एक्सपायरी डेट जांचें।
  • पावर स्प्रेयर से 150–200 लीटर/एकड़ और नैपसैक स्प्रेयर से 450–500 लीटर पानी का प्रयोग करें।

निष्कर्ष

इस समय सोयाबीन फसल पर इल्लियों, चूहों, चक्रभंग, सफेद मक्खी और फफूंदजनित रोगों का खतरा है। समय पर उचित रसायन, सिंचाई और एकीकृत प्रबंधन उपायों से फसल को बचाया जा सकता है।

नोट: रसायनों के उपयोग से पहले हमेशा स्थानीय कृषि विशेषज्ञ या कृषि विभाग की सलाह लें।

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