गेहूं की बुवाई का सही समय

गेहूं की बुवाई का सही समय

गेहूं की बुवाई को लेकर किसानों के मन में कई तरह की शंका रहती हैं, जैसे कि बुवाई कब करें, बुवाई के लिए कौन से बीज का चुनाव करें या फिर किस विधि से गेहूं की बुवाई करें ?

गेहूं की बुवाई का समय

किसानों के ऐसे ही कई सवालों के जवाब इस हफ्ते के पूसा समाचार में दिए गए हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के निदेशक ने किसानों से ऐसी ही कई जानकारियां साझा की हैं। संस्थान के निदेशक डॉ अशोक कुमार सिंह गेहूं की खेती के बारे में बताते हैं, “किसान भाई इस समय गेहूं की बुवाई कर रहे हैं, गेहूं की बुवाई समय से कर लें।

गेहूं की बुवाई का सही समय प्रबंधित कृषि के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारत में, गेहूं मुख्यतः रबी मौसम की फसल है, जो अक्टूबर से मार्च तक की अवधि में बोई जाती है। इस अवधि में सर्दियों के मौसम के कारण तापमान गिरता है, जो गेहूं की वृद्धि के लिए अनुकूल होता है। दूसरी ओर, खरीफ फसलें, जैसे चावल और ज्वार, आमतौर पर जून से सितंबर तक बोई जाती हैं। इस समय में अधिक वर्षा और उच्च तापमान होते हैं, जो गेहूं के लिए उपयुक्त नहीं है।

गेहूं की बुवाई का आदर्श समय विभिन्न कारकों पर निर्भर करता है, जिसमें क्षेत्रीय जलवायु और मिट्टी की गुणवत्ता शामिल हैं। उदाहरण के लिए, उत्तर भारत में, ideal time for wheat sowing is around late October to early November. In contrast, southern states may have a slightly different optimal window based on local climatic conditions. सही समय पर बुवाई करने से फसल की उपज और गुणवत्ता में सुधार होता है, जिससे किसान को अधिक लाभ मिल सकता है।

कृषि विशेषज्ञों की सलाह भी इस संदर्भ में महत्वपूर्ण होती है। वे आमतौर पर स्थानीय मौसम के पैटर्न, वर्षा की संभावनाओं और तापमान के आधार पर गेहूं की बुवाई के लिए सही समय को निर्धारित करने में मदद करते हैं। इसके अतिरिक्त, मिट्टी की गुणवत्ता का आकलन करना आवश्यक है, क्योंकि अच्छी गुणवत्ता वाली मिट्टी में बुवाई का समय कुछ हद तक अलग हो सकता है। इस प्रकार, सही समय पर गेहूं की बुवाई करना न केवल कृषि उत्पादकता को बढ़ाता है, बल्कि किसान की आर्थिक स्थिति में भी सुधार करता है।

बुवाई से पहले की तैयारी

गेहूं की बुवाई से पहले की तैयारी फसल की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। सही समय पर की गई तैयारी न केवल फसल के विकास में सहायक होती है, बल्कि यह फसल की गुणवत्ता और उपज बढ़ाने में भी योगदान देती है। सबसे पहले, मिट्टी की जुताई की प्रक्रिया को ध्यान में रखना आवश्यक है। जुताई से मिट्टी वायु और जल के लिए अभिवाहित होती है, जिससे पौधों की वृद्धि के लिए आवश्यक पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ती है। सही गहराई पर जुताई करने से भी बीज की सही स्थिति सुनिश्चित होती है।

इसके बाद, मिट्टी की उर्वरता में सुधार के लिए उचित खाद का चयन और उपयोग करना आवश्यक है। यह सुनिश्चित करना चाहिए कि मिट्टी में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश का संतुलन सही है। जैविक खाद का उपयोग करने से मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार होता है और यह फसलों को आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करता है। फसल चक्र का भी ध्यान रखना चाहिए, जिसमें अलग-अलग फसलों की बुवाई और कटाई का क्रम महत्वपूर्ण होता है। यह मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने और कीट एवं रोगों से बचाने में सहायक है।

बीज की गुणवत्ता और मात्रा का चयन भी एक महत्वपूर्ण पहलू है। उच्च गुणवत्ता वाले बीज का चयन करने से फसल की उत्पादन क्षमता में वृद्धि होती है। बीजों का स्वस्थ और रोगमुक्त होना आवश्यक है, और बीज की सही मात्रा निर्धारित करना चाहिए। मानक बुवाई मान के अनुसार, प्रति एकड़ बीज की उचित मात्रा निर्धारित करके किसान अधिकतम उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। सभी इन पहलुओं पर ध्यान देकर गेहूं की सफल बुवाई को सुनिश्चित किया जा सकता है।

गेहूं बुवाई में बीजोपचार है जरूरी

गेहूं की फसल की अगर बीजोपचार के बाद बुवाई करते हैं तो कई तरह के रोगों से बचाया जा सकता है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के पादप रोग संभाग के वैज्ञानिक डॉ एमएस सहारन बीजोपचार के बारे में विस्तार से बताते हैं, “इस समय गेहूं की बुवाई चल रही है, बहुत सारे किसान भाईयों ने गेहूं की बुवाई कर भी ली होगी। गेहूं की फसल में सबसे बड़ी समस्या लूज स्मट (खुला कंडवा) की आती है। इसमें आपने देखा होगा कि फसल बड़ी हो जाती हैं, बालियां आ जाती हैं तो उसमें काला दाना पड़ जाता है। काले दाने में फफूंद के स्पोर होते हैं।”वो आगे कहते हैं, “इसी तरह की कई और भी बीमारियां हैं जो बीज जनित होती हैं, जैसे कि एक बीमारी करनाल बंट होती है, करनाल बंट से भी दाना काला पड़ जाता है। ये भी फसल कटने के बाद दिखायी देता है। इसी तरह की एक बीमारी हेड स्कैब भी होती है, ये बीमारी उन क्षेत्रों में आती है, जहां नमी ज्यादा होती है।”इस बीमारियों से बचने के लिए डॉ सहारन सलाह देते हैं, “बीज की बुवाई से पहले बीजोपचार जरूर करें, बीजोपचार के लिए किसान भाइयों को कार्बेंडाजीम बीजोपचार कर लें। बीजोपचार के लिए दो से ढाई ग्राम प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचार कर सकते हैं। बीजोपचार करने के लिए सबसे गेहूं के बीज में फंगीसाइड डाल दीजिए, उसके बाद बीज को थोड़ा गीला कर दीजिए, आपको ज्यादा गीला भी नहीं करना है, बस इतना करना है कि सारी दवाई बीज पर लग जाए।”लेकिन बीजोपचार करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए, जैसे कि बीजोपचार की प्रक्रिया छाया में ही करनी चाहिए और इसे छाया में सुखाना चाहिए, इसके बाद अगले दिन बुवाई करनी चाहिए।

बुवाई की नई विधियाँ

गेहूं की बुवाई में नई तकनीकों और विधियों का उपयोग खेती को अधिक प्रभावी और परिणामकारी बनाने में सहायक होता है। इनमें से एक प्रमुख विधि मशीन से बुवाई है। मशीन से बुवाई से न केवल समय की बचत होती है, बल्कि यह सुनिश्चित करता है कि बीज समान दूरी पर और सही गहराई पर लगाए जाएं, जिससे बढ़ने की प्रक्रिया में सुधार होता है। इसके अलावा, यह श्रम की आवश्यकता को भी कम कर देता है, जो कृषकों के लिए एक महत्वपूर्ण लाभ है।

ड्रिप इरिगेशन भी एक अन्य उन्नत तकनीक है, जो कृषकों को जल प्रबंधन में बेहतर सहायता प्रदान करती है। इस विधि में, पानी धीरे-धीरे और सीधे पौधों की जड़ों के पास पहुंचाया जाता है, जिससे जल की बर्बादी कम होती है और पौधों की वृद्धि के लिए आवश्यक जल की मात्रा को कुशलता से नियंत्रित किया जा सकता है। यह तकनीक विशेष रूप से शुष्क क्षेत्रों में अत्यधिक उपयोगी है और गेहूं की पैदावार को बढ़ाने में सहायक होती है।

इसके अलावा, अन्य उन्नत कृषि उपाय जैसे कि उर्वरक प्रबंधन, मिट्टी की गुणवत्तापरकता और रोग-निरोधक उपाय भी बुवाई प्रक्रिया को बेहतर बनाते हैं। उदाहरण के लिए, जैविक उर्वरक का उपयोग करने से मिट्टी की सेहत में सुधार आता है और यह प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित करने में मदद करता है। हालांकि, इन नई विधियों को अपनाने के साथ कुछ संभावित चुनौतियां भी हैं, जैसे कि प्रारंभिक निवेश की उच्चता और प्रशिक्षण की आवश्यकता।

इस प्रकार, गेहूं की बुवाई के लिए नई तकनीकों को अपनाना कृषकों के लिए न केवल फायदे मंद हो सकता है, बल्कि सही योजना और प्रबंधन के साथ लागत और समय की बचत भी कर सकता है।

बुवाई के बाद की देखभाल

गेहूं की फसल के बुवाई के बाद की देखभाल और संरक्षण अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। सही देखभाल न केवल फसल की गुणवत्ता को बढ़ाती है, बल्कि उत्पादन को भी सुनिश्चित करती है। सबसे पहले, बुवाई के बाद नियमित निगरानी बेहद आवश्यक है। इस अवधि में मिट्टी की नमी, पौधों की वृद्धि और किसी भी संभावित रोग या कीटों की उपस्थिति की जांच करनी चाहिए।

सिंचाई एक महत्वपूर्ण घटक है, विशेषकर तब जब बारिश की मात्रा पर्याप्त नहीं हो। गेहूं की फसल के लिए सही समय पर सिंचाई करना अत्यंत आवश्यक है। सामान्यत: फसल को 7-10 दिनों के बाद पहली सिंचाई दी जाती है, उसके बाद मौसम और मिट्टी की स्थिति के अनुसार सिंचाई की जाती है।

कीटनाशकों का उपयोग भी बुवाई के बाद की देखभाल में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। फसल की निगरानी के दौरान यदि किसी कीट या रोग का पता चलता है, तो तत्काल उचित कीटनाशक का चयन कर उसका उपयोग करना चाहिए। यह ध्यान रखना आवश्यक है कि कीटनाशकों का प्रयोग संयम से करें, ताकि पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े।

इसके अलावा, गेहूं की फसल को विभिन्न रोगों से बचाने के लिए कुछ उपाय भी अपनाए जा सकते हैं। फसल चक्र, मल्चिंग, और उचित मात्रा में खाद का उपयोग रोगों की रोकथाम में सहायक होता है। जैसे-जैसे फसल का विकास होता है, फसल का सावधानीपूर्वक प्रबंधन इस बात को सुनिश्चित करता है कि गेहूं की फसल स्वस्थ, मजबूत और स्वस्थ पैदावार देने वाली हो।

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार जब वातावरण में औसतन तापमान 22 डिग्री सेल्सियस हो जाए तब मौसम गेंहू की बुवाई के लिए उपयुक्त होता हैं। यह तापमान 25 अक्टूबर से 25 नवंबर तक उपयुक्त रहता हैं

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